Skip to main content

History of Chamba | चंबा का इतिहास

 चंबा का इतिहास |History of Chamba 


1. जिले के रूप में गठन- 15 अप्रैल, 1948


2. जिला मुख्यालय- चम्बा


6. जनसंख्या - 5, 19,050 (2014)


7. लिंग अनुपात 986 (2011 में)


8. दशकीय वृद्धि दर 12.63% (2011 में)


भौगोलिक स्थिति- चम्बा जिला हिमाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह 32°10" से 33°12' उत्तरी अक्षांश तथा 75°47 से भूगोल 39 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। चम्बा के उत्तर एवं पश्चिम में जम्मू-कश्मीर, पूर्व में लाहौल-स्पीति, दक्षिण में काँगडा जिले की सीमाएँ लगती हैं।


379-80 (2011) 4.दर- 22.15% (2011 में)


पर्वत श्रृंखलाएँ-हाथीधार चम्बा में स्थित है। यह कम ऊँचाई वाले शिवालिक पर्वत हैं। हाथीधार और धौलाधार के बीच भटियात तहसील स्थित है। पांगी श्रृंखला पीर पंजाल को कहा जाता है। यह पीर पंजाल श्रृंखला बड़ा भंगाल से चम्बा में प्रवेश कर चम्बा को दो भागों में बाटती है। दगानी धार चम्बा और भद्रवाह (जम्मू-कश्मीर) के बीच की सीमा बनाता है।


• बरें जालसु, साच, कुगति, पौडरी, बसोदन, चम्बा जिले के प्रसिद्ध दरें हैं।


* नदियाँ-चिनाब (चन्द्रभागा) नदी थिरोट से चम्बा में प्रवेश करती है और संसारी नाला से चम्बा से निकलकर जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करती है। उदयपुर में मियार खड्ड और साच में सैचुनाला विनाब से मिलता है। रावी नदी बड़ा भंगाल से निकलती है। बुढ़िल और तुन्डाह रावी की सहायक नदियाँ हैं। साल नदी चम्बा के पास रावी से मिलती है। सियूल रावी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। रावी नदी खैरी से चम्बा छोड़कर अन्य राज्य जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करती है।


* घाटियाँ-रावी घाटी, चिनाब (चन्द्रभागा) घाटी चम्बा में स्थित है। भटियात और सिंहुता चम्बा की सबसे उपजाऊ घाटी है। ● झीलें - मणिमहेश, गढ़ासरू, खजियार, महाकाली, लामा। (ii) इतिहास


* ऐतिहासिक स्त्रोत एवं इतिहास- चम्बा के राजाओं के बारे में विवरण हमें कल्हण द्वारा रचित 'राजतरंगिणी' में मिलता है। उपलब्ध रिकॉर्ड में पत्थर लेख, शिला लेख तथा ताम्रपत्र लेख प्रमुख हैं। पत्थर लेख तो गुप्त काल के बाद 7वीं शताब्दी के समय के हैं। इसके अलावा शाही वंशावलियाँ भी इतिहास पर प्रकाश डालती हैं।

चम्बा क्षेत्र में भद्र साल्व, यौधेय, औदुम्बर और किरातों ने अपने प्राचीन गणतंत्रीय कबीले स्थापित किये। इण्डो-ग्रीक और शक कुषाणों ने इन कबीलों को अपने नियंत्रण में कर उनकी शक्ति को क्षीण कर दिया। इन क्षेत्रों को बाद में अपठाकुराई तथा राहुन के नाम से जाना गया तथा इनके शासक-'ठाकुर' व 'राजा' कहलाये। रावी घाटी के ऊपरी क्षेत्रों को राणाओं से मेरूवर्मन ने जीत लिया जिसका वर्णन 'अशाद' (आस्था) नामक एक जागीरदार के साक्ष्यों से मिलता है जो मेरूवर्मन के अधीन था। रावी घाटी के निचले क्षेत्र भी 10वीं एवं 11वीं शताब्दी के दौरान चम्बा राज्य के अधीन आ गए। पद्दर क्षेत्र राणाओं पर चतर सिंह ने (1664-90) ने अपना अधिकार जमा लिया था। अंतिम ताम्र पत्र लेख जिसमें राणाओं का वर्णन मिलता है, वह राजा अशादा वर्मन (1080-1100) के काल में जारी की गई थी। ह्वेनसांग के अनुसार चम्बा मण्डी और सुकेत क्षेत्र (635 ई. के आस पास ) जालंधर राज्य के अंतर्गत आते थे। चम्बा रियासत की स्थापना - चम्बा रियासत की स्थापना 550 ई. में अयोध्या से आए सूर्यवंशी राजा मारू ने की थी। मारू ने भरमार


आदित्य वर्मन (620 ई.)- आदित्य वर्मन का उल्लेख उसके प्रपौत्र मेरु वर्मन (680 ई.) के भरमौर शिलालेखों में मिलता है। आदित्य वर्मन पहला राजा था जिसने सर्वप्रथम अपने नाम के साथ वर्मन का उपनाम जोड़ा। कुल्लू के इतिहास में भी सबसे पुराना उल्लेख सम्भवतः आदित्य वर्मन के बारे में है। इसके बाद बाला वर्मन (640 ई.) और दिवाकर वर्मन (660 ई.) चम्बा के राजा हुए।


* मेरू वर्मन (680 ई.) मेरूवर्मन भरमौर का सबसे शक्तिशाली राजा हुआ। मेरूवर्मन ने वर्तमान चम्बा शहर तक अपने राज्य का विस्तार किया था। उसने कुल्लू के राजा दत्तेश्वर पाल को हराया था। मेरुवर्मन ने भरमौर में मणिमेहश मंदिर, लक्षणा देवी मंदिर, गणेश मंदिर नरसिंह मंदिर और छत्तराड़ी में शक्तिदेवी के मंदिर का निर्माण करवाया। गुग्गा शिल्पी मेरूवर्मन का प्रसिद्ध शिल्पी था। गम नामक स्थान पर मिले अशाद (आस्था) नामक सामती राजा के शिला लेख में मेरूवर्मन का वर्णन मिलता है।


अजयवर्मन (760 ई.)-गद्दियों के अनुसार वह अजय वर्मन के समय दिल्ली से आकर भरमौर में बसे थे।


लक्ष्मीवर्मन (800 ई.) -लक्ष्मीवर्मन के समय राज्य में हैजा महामारी फैल गई जिससे बहुत लोग मारे गए। इसी समय किरातों (तिब्बतियाँ) ने चम्बा (ब्रह्मपुर) पर आक्रमण कर राजा को मार दिया और राज्य पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर कुल्लू के शरणार्थी राजा जरेश्वर पाल ने बुशहर रियासत की सहायता से स्वयं को स्वतंत्र करवा लिया।


मुसानवर्मन (820 ई.)-लक्ष्मीवर्मन की मृत्यु के बाद रानी ने राज्य से भागकर एक गुफा में पुत्र को जन्म दिया। पुत्र को गुफा में रानी आगे बढ़ गई। परन्तु वजीर और पुरोहित रानी की सच्चाई जानने के बाद जब गुफा में लौटे तो बहुत सारे चूहों को बच्चे की रक्षा करते हुए पाया। यहीं से राजा का नाम 'मुसान वर्मन' रखा गया। रानी और मूसानवर्मन सुकेत के राजा के पास रहे। सुकेत के राजा ने अपनी बेटी का विवाह मूसानवर्मन से कर दिया और उसे पंगाणा की जागीर दहेज में दे दी। मूसान वर्मन ने सुकेत की सेना के साथ ब्रह्मपुर पर पुनः अधिकार कर लिया। मूसानवर्मन ने अपने शासनकाल में चूहों को मारने पर प्रतिबंध लगा दिया था।


साहिलवर्मन (920 ई.) साहिलवर्मन (920 ई.) ने चम्बा शहर की स्थापना की। राजा साहिल वर्मन के दस पुत्र एवं एक पुत्री थी जिसका नाम चम्पावती था। उसने चम्बा शहर का नाम अपनी पुत्री चम्पावती के नाम पर रखा। वह राजधानी ब्रह्मपुर से चम्बा ले गया। साहिलवर्मन की पत्नी रानी नैना देवी ने शहर में पानी को व्यवस्था के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। तब से रानी नैना देवी की याद में यहाँ प्रतिवर्ष सही मेला मनाया जाता है। यह मेला महिलाओं और बच्चों के लिए प्रसिद्ध है। राजा साहिलवर्मन ने लक्ष्मी नारायण चन्द्रशेखर (साहू) चन्द्रगुप्त और कामेश्वर मंदिर का निर्माण भी करवाया।


युगांकर वर्मन साहिल वर्मन का सबसे बड़ा पुत्र था। साहिल वर्मन ने अपने कार्यकाल में तांबे की मुद्रा 'चकली' चलवाई। साहिल वर्मन के बारे में जानकारी राजा सोमवर्मन और अस्तुवर्मन के ताम्रपत्र लेखों से मिलती है। राजा साहिल वर्मन के योगी चरपटनाथ थे। 84 साधुओं के वरदान से राजा साहिल वर्मन को भरमौर में 10 पुत्र और एक पुत्री हुई। इन साधुओं का गुरु नेता योगी चरपटनाथ था। साहिल वर्मन को कोर और तुरुषकों के दलों को हि.प्र. से खदेड़ने का श्रेय दिया जाता है। भरमौर से चम्बा राजधानी बदलने का सुझाव राजा साहिल वर्मन को योगी चरपटनाथ ने दिया था। 

युगांकर वर्मन (940 ई.)- युगांकर वर्मन (940 ई.) की पत्नी त्रिभुवन रेखा देवी ने भरमौर में नरसिंह मंदिर का निर्माण करवाया। युगांकर वर्मन ने चम्बा में गौरी शंकर मंदिर का निर्माण करवाया।  

सलवाहन वर्मन (1040 ई.)-राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर के शासक अनन्तदेव ने भरमौर पर सतवाहन वर्मन के समय में आक्रमण किया था। सलवाहन वर्मन के कार्यकाल के शिलालेख मिले हैं जिसमे तिस्सा परगना और सेइकोठो का उस समय बलार (बसौली) राज्य में होने का पता चलता है। सलवाहन वर्मन की मूल्य अनन्त देव से लड़ते हुए हो गई थी। उसके बाद उसके पुत्र सोमवर्मन (1060 ई.) और अस्तुवर्मन (1080 ई.) राजा बने। अस्तु वर्मन ने अपनी बहन वापिका का विवाह अनंतदेव के पुत्र कलश से किया था। कलश का पुत्र हर्ष बाद में कश्मीर का राजा बना।


जमादा (जयष्ट) वर्मन (1105 ई.) - उसाटा वर्मन पांगी और चुराह के लौह टिकरी शिलालेख (1114 ई के समय के) के अनुसार 1105 ई. में राजा बना। पांगी और चुराह (तिस्सा) क्षेत्र उसके समय में चम्बा राज्य के भाग बन चुके थे। जाटा वर्मन का उल्लेख 1112 ई. में राजतरोंगणी में भी मिला है। जसाठा वर्मन ने कश्मीर के राजा हर्ष की लाहार वंश के सुशाला के विरुद्ध सहायता की थी। पांगी शिलालेख के अनुसार जसाटा वर्मन ने 1105 ई. के दौरान लाहौल घाटी पर कब्जा बनाए रखा था। 

उदयवर्मन (1120 ई.) उदयवर्मन ने कश्मीर के राजा सुशाला से अपनी दो पुत्रियों देवलखा और तारालेखा का विवाह किया जो सुशाला की 1128 ई. में मृत्यु के बाद सती हो गई।


ललित वर्मन (1143 ई.) ललित वर्मन के कार्यकाल के दो पत्थर लेख देवी री कोटी और सैचनाला (पांगी) में प्राप्त हुए हैं, जिससे पता चलता है कि तिस्सा और पांगी क्षेत्र उसके कार्यकाल में चम्बा रियासत के भाग थे। देवरी कोठी शिलालेख (1160 ई.) में राणा नागपाल ने तथा पांगी शिलालेख (1170 ई.) सलाही के पास राणा लुद्रपाल ने अंकित करवाये थे। इन दोनों शिलालेखों में ललित वर्मन को 'महाराजाधिराज' लिखा हुआ था।


विजय वर्मन (1175 ई.) -विजय वर्मन ने मुहम्मद गौरी के 1191 ई. और 1192 ई. के आक्रमणों का फायदा उठाकर कश्मीर और लद्दाख के बहुत से क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था।

 गणेश वर्मन (1512 ई.) - गणेश वर्मन ने चम्बा राज परिवार में सर्वप्रथम 'सिंह' उपाधि का प्रयोग किया था।


प्रताप सिंह वर्मन (1559 ई.) -1559 ई. में गणेश वर्मन की मृत्यु के बाद प्रताप सिंह वर्मन चम्बा का राजा बना। वह अकबर का समकालीन था। चम्बा से रिहलू क्षेत्र टोडरमल द्वारा मुगलों को दिया गया। प्रताप सिंह वर्मन ने काँगड़ा के राजा चंद्रपाल को हराकर गुलेर को चम्बा रियासत में मिला लिया था। रामपति गणेश वर्मन और प्रताप सिंह वर्मन का राजगुरु था। उसके कार्यकाल में मुकुला देवी की प्रतिमा उदयपुर- मृकुल में स्थापित की गई थी।


बलभद्र (1589 ई.) एवं जनार्दन बलभद्र बहुत दयालु और दानवीर था। लोग उसे 'बालों-कर्ण' कहते थे। उसका पुत्र जनार्दन उन्हें गद्दों से हटाकर स्वयं गद्दी पर बैठा। जनार्दन के समय नूरपुर का राजा सूरजमल मुगलों से बचकर उसकी रियासत में छुपा था। सूरजमल के भाई जगत सिंह को मुगलों द्वारा काँगड़ा किले का रक्षक बनाया गया जो सूरजमल के बाद नूरपुर का राजा बना। जहाँगीर के 1622 ई. में काँगड़ा भ्रमण के दौरान चम्बा का राजा जनार्दन और उसका भाई जहाँगीर से मिलने गए। चम्बा के राजा जनार्दन और जगत सिंह के बीच लोग में युद्ध हुआ जिसमें चम्बा की सेना की हार हुई। भिस्म्बर, जनार्दन का भाई युद्ध में मारा गया। जनार्दन को भी 1623 ई जगत सिंह ने धोखे से मरवा दिया। बलभद्र को चम्बा का पुनः राजा बनाया गया। परन्तु चम्बा 20 वर्षों तक जगत सिंह के कब्जे में रहा। जगत सिंह ने बलभद्र के पुत्र होने की स्थिति में उसकी हत्या करने का आदेश दिया था। बलभद्र को पृथ्वी सिंह नाम का पुत्र हुआ जिसको नर्स (दाई) बाट बचाकर मण्डी राजघराने तक पहुँच गई।


पृथ्वी सिंह (1641 ई.)- जगत सिंह ने शाहजहाँ के विरुद्ध 1641 ई. में विद्रोह कर दिया। इस मौके का फायदा उठाते हुए पृथ्वी सिंह मण्डी और सुकेत की मदद से रोहतांग दर्रे, पांगी, चुराह को पार कर चम्बा पहुँचा। गुलेर के राजा मानसिंह जो जगत सिंह का शत्रु था

उसने भी पृथ्वी सिंह की मदद की। पृथ्वी सिंह ने बसौली के राजा संग्राम पाल को भलेई तहसील देकर उससे गठबंधन किया। पृथ्वीसिंह ने अपना राज्य पाने के बाद चुराह और पांगी में राज अधिकारियों के लिए कोठी बनाई। पृथ्वी सिंह और संग्राम पाल के बीच भलेई तहसील को लेकर विवाद हुआ जिसे मुगलों ने सुलझाया। भलेई को 1648 ई. में चम्बा को दे दिया गया। पृथ्वी सिंह मुगल बादशाह शाहजहाँ का समकालीन था। उसने शाहजहाँ के शासनकाल में 9 बार दिल्ली की यात्रा की और 'रघुबीर' की प्रतिमा शाहजहाँ द्वारा भेंट में प्राप्त की। चम्बा में खज्जीनाग (खजियार), हिडिम्बा मंदिर (मैहला) और सीताराम मंदिर (चम्बा) का निर्माण पृथ्वी सिंह की नर्स (दाई) बाट न करवाया जिसने पृथ्वी सिंह के प्राणों की रक्षा की थी।


चतर सिंह (1660-1690 ई.)- चतर सिंह ने बसौली पर आक्रमण कर वहाँ के राजा संग्रामपाल से भलेई परगना जीत लिया। चतर सिंह ने औरंगजेब के 1678 ई. के सभी हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने का आदेश मानने से इंकार कर दिया और उल्टें मंदिरों पर कलश बढ़ाए जो आज भी विद्यमान हैं। उसने अपने छोटे भाई शक्ति सिंह को औरंगजेब से मिलने भेजा परंतु वह भी बजवाड़ा से वापिस लौट आया। चातर


सिंह ने गुलेर के राज सिंह, बसौली के धीरजपाल और जम्मू के कृपाल देव के साथ मिलकर पंजाब के सूबेदार मिजी रियाजवेग को हराया।

 उदय सिंह (1690-1720 ई.) उगर सिंह (1720 ई.), दलेल सिंह (1735 ई.) - चतर सिंह के पुत्र राजा उदय सिंह ने अपने चाचा वजीर जय सिंह की मृत्यु के बाद एक नाई को उसकी पुत्री के प्रेम में पड़कर चम्बा का वजीर नियुक्त कर दिया। उदय सिंह के बाद 1720


ई. में जम्मू के राजा ध्रुवदेव की सहायता से उसका पुत्र उगर सिंह राजा बना। उगर सिंह के बाद उसका चचेरा भाई दलेल सिंह राजा बना।

 उम्मेद सिंह (1748)- उम्मेद सिंह के शासन काल में चम्बा राज्य मण्डी की सीमा तक फैल गया। उम्मेद सिंह का पुत्र राज सिंह राजनगर में पैदा हुआ। उम्मेद सिंह ने राजनगर में 'नाडा महल' बनवाया। रंगमहल (चम्बा) की नींव भी उम्मेद सिंह ने रखी थी। उसने अपनी मृत्यु के बाद रानी के सती न होने का आदेश छोड़ रखा था। उम्मेद सिंह की 1764 ई. में युद्ध के दौरान ज्वालामुखी में मृत्यु हो गई।


राज सिंह (1764-94 ई.) राज सिंह अपने पिता की मृत्यु के बाद 9 वर्ष की आयु में राजा बना। घमण्ड चंद ने पथियार को चा से छीन लिया। परन्तु रानी ने जम्मू के रणजीत सिंह की मदद से इसे पुनः प्राप्त कर लिया। चम्बा के राजा राजसिंह और राजा संसार चंद के बीच रिहलू क्षेत्र पर कब्जे के लिए युद्ध हुआ। राजा राज सिंह की शाहपुर के पास 1794 ई. में युद्ध के दौरान मृत्य हो गई। निक्का, रांझा, छन्जू और हरक राजसिंह के दरबार के निपुण कलाकार थे। राज सिंह की मृत्यु 1794 ई. में अजीत सिंह पूर्विया की तलवार सिर पर लगने से हुई थी। चम्बा के राजा राजसिंह और काँगड़ा के राजा संसार चंद ने 1788 ई. में शाापुर में संधि की


हर राज के दरबार के निपुण कलाकार थे। राज सिंह की मृत्यु 1794 ई. में अजीत सिंह पूर्विया सिर पर लगने से हुई थी। चम्बा के राजा राजसिंह और कांगड़ा के राजा संसार चंद ने 1788 ई. में शाहपुर में संधि की थी। 

 जीत सिंह (1794 ई.)-जीत सिंह के समय चा राय ने नाथ बजीर को संसार चंद के खिलाफ युद्ध में सैनिकों के साथ भेजा। नाथू और गोरखा अमर सिंह थापा, बिलासपुर के महान चंद आदि के अधीन युद्ध लड़ने गया था।


चडत सिंह (1808 ई.)- चढ़त सिंह 6 वर्ष की आयु में राजा बना। नाथू वजीर राजकाज देखता था। रानी शारदा (चढ़त सिंह की माँ) 1825 में राधा कृष्णा मंदिर की स्थापना की। पद्दर के राज अधिकारी रतनू ने 1820-25 ई. में जास्कर पर आक्रमण कर उसे चम्बा का भाग बनाया था। 1938 ई. में नाथू बजीर की मृत्यु के बाद 'वजीर भागा' चम्बा का वजीर नियुक्त किया गया। 1839 ई. में विग्ने और असाल कॉर्नियम में चम्बा की यात्रा को चढ़त सिंह की 42 वर्ष की आयु में 1844 ई. में मृत्यु हो गई। विग्ने चम्बा आने वाले प्रथम यूरोपियन थे। चम्बा में अंतिम बार सती प्रथा का पालन 1844 ई. में चढ़त (चरहट) सिंह की मृत्यु के समय किया गया।


श्री सिंह (1844 ई.) सिंह की मृत्यु के बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र श्री सिंह 5 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा। श्री सिंह की माँ (कटोच राजकुमारी) अपने मंत्री वजीर भागा की सहायता से राज्य का कार्यभार चलाती थी। लक्कड़शाह (नारायणशाह) ब्राह्मण श्री सिंह के समय प्रशासन पर नियंत्रण किये हुए था उसने अपनी मुद्रा लकड़शाही भी चलाई। उसकी साहू घाटी के 'बेलज' में हत्या कर दी गई। अंग्रेज सिख युद्ध के बाद 9 मार्च 1846 की संधि द्वारा व्यास और सतलुज के बीच के क्षेत्र अंग्रेजों को मिल गए। इसके बाद 16 मार्च, 1846 ई. की एक और संधि द्वारा रावी और सिंधु नदियों के बीच के क्षेत्र जम्मू के राजा गुलाब सिंह को देने का फैसला हुआ जिसका चम्बा ने विरोध किया क्योंकि वह भी इस क्षेत्र में आता था। वजीर भागा के प्रयासों से सर हेनरी लॉरेंस ने चम्बा की स्वतंत्रता बनाये रखी बदले में भद्रवाह क्षेत्र गुलाब सिंह को दिया गया। चम्बा अंग्रेजी शासन के आधिपत्य में आ गया जिस पर 12000/ वार्षिक राज्यकर लगाया गया। 6 अप्रैल, 1848 ई. में अंग्रेजों ने श्री सिंह को सनद प्रदान की जिसके द्वारा चम्बा को उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए प्रदान किया। इस सनद में संतानहीन राजा के भाई को उत्तराधिकारी बनाने का प्रावधान था। वर्ष 1862 की सनद में राजा को गोद लेने का अधिकार भी दे दिया गया।


1857 ई. के विद्रोह में श्री सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया। उसने मियाँ अवतार सिंह के अधीन डल्हौजी में अंग्रेजों की सहायता के लिए सेना भेजी। वजीर भागा 1854 ई. में सेवानिवृत हो गया और उसका स्थान वजीर बिल्लू ने ले लिया। वर्ष 1863 ई. को राजा श्री सिंह की प्रशासन में मदद के लिए मेजर ब्लेयर रोड को चम्बा का प्रबंधक (सुपरिन्टेन्डेन्ट) नियुक्त किया गया। मेजर ब्लेयर रोड ने कई सुधार किए जिससे राज्य की आय 1870 तक 1,73,000 हो गई। मेजर ब्लेयर रोड ने पी. डब्ल्यूडी विभाग स्थापित कर चम्बा को दुर्गम क्षेत्रों से जोड़ा। चम्बा और खजियार में डाक बंगले और राजा के लिए जदरीघाट में 1870-71 ई. में एक महल बनवाया गया। चम्बा में 1863 ई. में एक डाकघर खोला गया। चम्बा में एक स्कूल खोला गया। वर्ष 1864 ई. में चम्बा की वन सम्पदा 99 वर्ष के लिए पट्टे पर अंग्रेजा को दे दी गई जिससे 22 हजार रुपये वार्षिक आय होने लगी। वर्ष 1866 ई. में चम्बा में एक अस्पताल खोला गया। वर्ष 1870 ई. में 32 वर्ष की आयु में श्री सिंह की मृत्यु हो गई। श्री सिंह का कोई पुत्र नहीं था अतः 1848 ई. की सनद द्वारा उसके छोटे भाई गोपाल सिंह को 1870 ई. में मेजर ब्लेयर रोड ने गद्दी पर बैठाया।


गोपाल सिंह (1870 ई.)- श्री सिंह का भाई गोपाल सिंह गद्दी पर बैठा। उसने शहर की सुंदरता बढ़ाने के लिए कई काम किए। उसके कार्यकाल में 1871 ई. में लार्ड मायो चम्बा आए। गोपाल सिंह को गद्दी से हटा 1873 ई. में उसके बड़े बेटे शाम सिंह को राजा बनाया गया।


शाम सिंह (1873 ई.)-शाम सिंह को सात वर्ष की आयु में अमृतसर के कमीशनर जनरल रेनल टायलर ने चम्बा आकर 17 अक्टूबर, 31873 ई. को गद्दी पर बैठाया। शाम सिंह के समय कर्नल ब्लेयर रोड (1874-77). आर. टी. वरनी (1877-78) और कैप्टन सी.एच.टी. मार्शल (1879-1885) सुपरिन्टेन्डेन्ट थे। मियाँ अवतार सिंह (1873-78) गोविंदचंद (1885-98) तथा मियाँ भूरी सिंह (1890-1904) दीवान वजीर थे। शाम सिंह के समय जनरल रेनल टायलर (1873), सर हेनरी डेविस (लेफ्टिनेंट गवर्नर पंजाब, 1874 ई.) वायसराय लार्ड कर्जन एवं लेडी कूर्जन (1900 ई.). सर मेकबर्थ यंग (लेफ्टिनेंट गवर्नर, पंजाब, 1901 ई.) ने चम्बा की यात्रा की


शाम सिंह ने 1876 में इम्पीरियल दरबार तथा 1877 में दिल्ली दरबार में भाग लिया। कर्नल रोड ने 1876 ई. में पहली बार - चम्बा लैण्ड रेवेन्यू सैटलमेन्ट (भूमि बंदोबस्त ) करवाया। वर्ष 1894 में पंजाब सरकार को वनों की आय का 2/3 चम्बा को देनें का फैसला हुआ। वर्ष 1878 ई. में जान हैरी को शाम सिंह का शिक्षक नियुक्त किया गया। चम्बा के महल में दरबार हॉल को C.H.T. मार्शल के नाम पर जोड़ा गया। वर्ष 1880 ई. में चम्बा में हाप्स की खेती शुरू हुई। सर चार्ल्स एटिक्सन ने 1883 ई. में चम्बा की यात्रा की। वर्ष 1887 ई. को चम्बा डाक विभाग को भारतीय डाक तार विभाग से जोड़ा गया। 1881 ई. में तिस्सा में एक डिस्पेन्सरी खोली गई। 1881 G 7


1875 ई. में कर्नल रोड के अस्पताल को तोड़कर 1891 ई. में 40 बिस्तरों का शाम सिंह अस्पताल बनाया गया। रावी नदी पर शीतला पुल जो 1894 ई. की बाढ़ में टूट गया था की जगह 1895 में लोहे का सस्पेंशन पुल बनाया गया। 1895 ई. में भटियात में विद्रोह हुआ। शाम सिंह के छोटे भाई मियाँ भूरी सिंह को 1898 ई. में वजीर बनाया गया। 1902 ई. में शाम सिंह बीमार पड़ गए। वर्ष 1904 ई. में भूरी सिंह को चम्बा का राजा बनाया


राजा भूरी सिंह (1904 ई.)-12 अक्टूबर, 1904 ई. को पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर चार्ल्स रिवाज ने भूरी सिंह को गद्दी पर बिठाया। भूरि सिंह अपने भाई शाम सिंह के समय 7 वर्ष तक दीवान/वजीर रहे थे। वर्ष 1906 ई. में उन्हें K.C.I.S. (नाईटहुड) की उपाधि प्रदान की गई। वर्ष 1908 ई. में सरकार ने वनों को पाँच वर्ष के लिए चम्बा को वापिस दे दिया। वर्ष 1908 में 'भूरी सिंह म्यूजियम' डॉ. फोगल के नेतृत्व में खोला गया। साल नदी पर 1910 ई. में एक बिजलीघर का निर्माण कर चम्बा शहर को बिजली प्रदान की गई। उनके समय में सड़कों को सुधारा गया, डाक बंगले बनवाए गए। वर्ष 1905 ई. में मिडल स्कूल को हाई स्कूल बना दिया गया। चम्बा में पुस्तकालय खोला गया। राजा भूरी सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध में (1914-18) में अंग्रेजों की सहायता की। राजा भूरी सिंह की 1919 ई. में मृत्यु हो गई जिसके बाद टिक्का राम सिंह (1919-35) चम्बा के राजा बने।


राजा राम सिंह (1919-1935 ) - राम सिंह को पंजाब के गवर्नर एडवर्ड मेक्लेगन ने मार्च 1920 में गद्दी पर बैठाया। राजा राम सिंह को राजकाज प्रशिक्षण देने हेतु मिस्टर E.M. एटकिंसन को नियुक्त किया गया। राजा ने चम्बा में 15 स्कूल खोले । राजा राम सिंह ने अपने भाई मियाँ केसरी सिंह को अपना वजीर नियुक्त किया। चम्बा-नूरपुर रोड, चम्बा भरमौर सड़क (20 मील तक कियानी के पास रावी नदी पर अस्थाई पुल का निर्माण, मुल निकासी व्यवस्था, पीने के पानी की आपूर्ति के लिए टैंक निर्माण जैसे कार्य राम सिंह के कार्यकाल में हुए। वर्ष 1935 ई. में राजा राम सिंह की लाहौर में 45 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई जिसके बाद उनका बेटा लक्ष्मण सिंह 11 वर्ष की आयु में राजा बना। चम्बा राज्य की आय वर्ष 1935 में 9 लाख रुपये वार्षिक हो गई थी।


राजा लक्ष्मण सिंह राजा लक्ष्मण सिंह को 1935 ई. में चम्बा का अन्तिम राजा बनाया गया। चम्बा रियासत 15 अप्रैल, 1948 ई. को हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बन गई।





Comments

Popular posts from this blog

मरने के बाद नाक और कान में रुई क्यों डाली जाती है

 वेदों में मौत को अटल कहा गया है यानी जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है उसकी उसका अंत निश्चित है  लेकिन आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि जब किसी की मौत हो जाती है तो उसके नाक और कान में रुई क्यूं डाली जाती हैं  नाक और कान में रुई डालना कोई नई बात नहीं है लेकिन सवाल ये उठता है कि ऐसा किया क्यों किया जाता है  अधिकतर लोग इस बारे में नहीं जानते या फिर वह वही बातें जान पाते हैं जो कि जीते जी उनके साथ होती है  नाको और कानों में रुई कुछ खास वजह से डाली जाती है अगर विज्ञान की नजर से देखे तो जब इंसान मरता है तो उसके खुले भागों से कई तरह के तरल पदार्थ निकलते हैं जिनसे काफी ज्यादा बदबू आती है जिसे रोकने के लिए रुई का इस्तेमाल किया जाता है वहीं हमारे पुराणों में मौत को नई शुरुआत कहा गया है यानी मृत्यु के बाद आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है और इसी काम को आसान बनाने के बनाने के लिए ऐसा किया जाता है  पुराणों में कहा गया है अगर आत्मा मस्तिष्क के ऊपरी भाग से निकलेगी तभी दूसरा जन्म होगा नहीं तो वह इस संसार में भटकती रहेगी इसीलिए इंसान के मरने के बाद उसके ...

Why rats is used for experiments

Why rat is used for experiments We all consider rats as creatures that spoil our food, but you will be shocked to know how much rats benefit us.  Whenever we have to choose animals for research we prefer to do experiments on rats and mice for human research.  The reason behind choosing rats is their anatomical, physiological, and genetic similarity to humans.  Some diseases that humans face like Cancer, Diabetes Hypertension, HIV, and AIDS these diseases also happen to rats. The nervous system of the rat and human beings react in the same way when infection or injury is happening to the body. Another reason is that their reproduction period is only 3 months and can produce 2,00,000 (two lacks) children in just 18 months. Their life cycle is only two to three years, whereas, in humans, the child remains in the mother's womb for 9 months, apart from this, due to their small size, they take up very little space, which makes it easy to keep an eye on them.  What types of...